Rajasthan Pashu Parichar Court Order: पशु परिचर भर्ती पर हाई कोर्ट की रोक, नॉर्मलाइजेशन फार्मूले के कारण कोर्ट आदेश

मुख्य बिंदु
- शोध से पता चलता है कि राजस्थान हाई कोर्ट ने पशु परिचारक भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगाई है, जिसका कारण सामान्यीकरण सूत्र (Z सूत्र) को लेकर विवाद है।
- यह संभावना है कि Z सूत्र, जिसे अवैध माना गया, ने परीक्षा शिफ्टों में असमान चयन पैदा किया, जिससे कुछ शिफ्टों के उम्मीदवारों को बाहर रखा गया।
- साक्ष्य इस ओर इशारा करते हैं कि कोर्ट ने नियुक्तियों पर रोक लगाई है, लेकिन दस्तावेज़ सत्यापन जारी रह सकता है, अगली सुनवाई 2 जुलाई 2025 को निर्धारित है।
- पारदर्शिता के मुद्दे उभरे हैं, क्योंकि कट-ऑफ अंक सार्वजनिक नहीं किए गए, जो 6000 से अधिक रिक्तियों और 10.52 लाख उम्मीदवारों को प्रभावित करता है।
पृष्ठभूमि
पशु परिचारक (पशुपालन सहायक) की भर्ती प्रक्रिया राजस्थान अधीनस्थ और मंत्रालय सेवा चयन बोर्ड (RSMSSB) द्वारा संचालित की जा रही थी, जिसमें पशुपालन विभाग में 6000 से अधिक पदों को भरने का लक्ष्य था। परीक्षा 1 दिसंबर से 3 दिसंबर 2024 तक छह शिफ्टों में आयोजित की गई, प्रत्येक शिफ्ट के लिए अलग-अलग प्रश्नपत्र थे, जिसमें 17.53 लाख आवेदकों में से 10.52 लाख उपस्थित हुए। सामान्यीकरण प्रक्रिया, जो विभिन्न शिफ्टों के स्कोर को समायोजित करने के लिए उपयोग की जाती है, विवाद का केंद्र बनी।
कोर्ट का हस्तक्षेप
हितेश पाटीदार और अन्य द्वारा दायर याचिका, जिसका प्रतिनिधित्व अधिवक्ता सरंज विज और हरेंद्र मील ने किया, में Z सूत्र के उपयोग पर सवाल उठाया गया, जिसे सामान्यीकरण के लिए अपनाया गया था। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि Z सूत्र अवैध है, और सुप्रीम कोर्ट ने P सूत्र को प्राथमिकता दी है। उन्होंने बताया कि Z सूत्र ने शिफ्टों के बीच चयन में असंतुलन पैदा किया, जिससे 1वीं और 4वीं शिफ्ट के उम्मीदवारों को बाहर रखा गया, जबकि 6वीं शिफ्ट में 33% चयन दर थी। राजस्थान हाई कोर्ट ने भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगाने का आदेश दिया और RSMSSB तथा पशुपालन विभाग को चार सप्ताह के भीतर प्रतिक्रिया देने का निर्देश दिया। अगली सुनवाई 2 जुलाई 2025 को निर्धारित है।
प्रभाव और चिंताएं
इस रोक से 10.52 लाख उम्मीदवार प्रभावित हुए हैं, जिनमें से कई नियुक्ति की प्रतीक्षा कर रहे थे। दस्तावेज़ सत्यापन जारी रह सकता है, लेकिन नियुक्तियां अगली सुनवाई तक नहीं की जा सकतीं, जो करियर में देरी का कारण बन सकता है। इसके अलावा, कट-ऑफ अंकों का सार्वजनिक न करना पारदर्शिता पर सवाल उठाता है, जिससे उम्मीदवारों में भरोसा कम हो सकता है।
विस्तृत विश्लेषण: राजस्थान पशु परिचारक कोर्ट आदेश
परिचय और संदर्भ
राजस्थान में पशु परिचारक (पशुपालन सहायक) की भर्ती प्रक्रिया, जो राजस्थान अधीनस्थ और मंत्रालय सेवा चयन बोर्ड (RSMSSB) द्वारा संचालित की जा रही थी, एक महत्वपूर्ण कानूनी बाधा का सामना कर रही है। 14 मई 2025 से पहले, राजस्थान हाई कोर्ट ने सामान्यीकरण सूत्र को लेकर विवाद के कारण भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगा दी, जो पशुपालन विभाग में 6000 से अधिक रिक्तियों को प्रभावित करता है। यह नोट उस कोर्ट आदेश, इसके पृष्ठभूमि और प्रभावों का विस्तृत विश्लेषण प्रदान करता है, जो हितधारकों के लिए समझने में सहायक होगा।
भर्ती प्रक्रिया की पृष्ठभूमि
भर्ती ड्राइव का उद्देश्य पशुपालन विभाग में स्टाफिंग की जरूरतों को पूरा करना था, जो राजस्थान में एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। परीक्षा 1 दिसंबर से 3 दिसंबर 2024 तक छह शिफ्टों में आयोजित की गई, प्रत्येक शिफ्ट के लिए अलग-अलग प्रश्नपत्र थे ताकि कठिनाई में भिन्नता को समायोजित किया जा सके। इस बहु-शिफ्ट दृष्टिकोण ने सामान्यीकरण प्रक्रिया की आवश्यकता को जन्म दिया, जो स्कोर को समायोजित करने के लिए एक सांख्यिकीय विधि है। कुल 17.53 लाख उम्मीदवारों ने आवेदन किया, जिनमें से 10.52 लाख परीक्षा में उपस्थित हुए, जो रुचि और प्रतिस्पर्धा को दर्शाता है।
सामान्यीकरण में आमतौर पर Z-स्कोर या प्रतिशत आधारित दृष्टिकोण शामिल होते हैं, लेकिन सूत्र का चयन परिणामों को काफी प्रभावित कर सकता है।
विवाद: सामान्यीकरण सूत्र विवाद
मुख्य मुद्दा Z सूत्र के उपयोग से उत्पन्न हुआ, जिसे याचिकाकर्ताओं हितेश पाटीदार और अन्य द्वारा, जिनका प्रतिनिधित्व अधिवक्ता सरंज विज और हरेंद्र मील ने किया, चुनौती दी गई। उन्होंने दावा किया कि Z सूत्र अवैध है, और सुप्रीम कोर्ट ने P सूत्र को इस तरह के समायोजन के लिए प्राथमिकता दी है। याचिकाकर्ताओं ने बताया कि Z सूत्र ने शिफ्टों के बीच चयन दर में असंतुलन पैदा किया, जो निष्पक्षता को प्रभावित करता है। विशेष रूप से:
- 1वीं और 4वीं शिफ्ट के उम्मीदवारों को मुख्य रूप से चयन से बाहर रखा गया।
- 6वीं शिफ्ट में 33% चयन दर थी, जबकि 4वीं शिफ्ट में यह दर काफी कम थी, जो महत्वपूर्ण असमानता दर्शाता है।
यह विवाद उच्च-दांव भर्तियों में सामान्यीकरण विधियों की संवेदनशीलता को उजागर करता है, जहां छोटे अंतर भी हजारों उम्मीदवारों के भविष्य को प्रभावित कर सकते हैं।
कोर्ट आदेश विवरण
राजस्थान हाई कोर्ट ने याचिका के जवाब में भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगाने का आदेश दिया। मुख्य निर्देश शामिल हैं:
- RSMSSB और पशुपालन विभाग को चार सप्ताह के भीतर अपनी प्रतिक्रिया प्रस्तुत करनी होगी।
- शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों के लिए दस्तावेज़ सत्यापन जारी रह सकता है, लेकिन अंतिम चयन या नियुक्तियां अगली सुनवाई तक नहीं की जा सकतीं।
- अगली सुनवाई 2 जुलाई 2025 को निर्धारित है, जो समाधान के लिए समयरेखा प्रदान करता है।
यह आदेश भर्ती के अंतिम चरणों को प्रभावी रूप से रोक देता है, जो नियुक्ति की प्रतीक्षा कर रहे उम्मीदवारों और विभाग दोनों को प्रभावित करता है, और कोर्ट की निष्पक्षता सुनिश्चित करने की भूमिका को दर्शाता है।
उम्मीदवारों और हितधारकों पर प्रभाव
इस रोक से 10.52 लाख उम्मीदवार प्रभावित हुए हैं, जो परीक्षा में उपस्थित हुए थे। जबकि दस्तावेज़ सत्यापन जारी रह सकता है, 2 जुलाई 2025 या उसके बाद तक नियुक्तियां नहीं की जा सकतीं, जो करियर प्रगति में देरी का कारण बन सकता है, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो इन पदों पर निर्भर हैं। यह आदेश 6000 से अधिक रिक्तियों को प्रभावित करता है, जो मुद्दे के पैमाने को दर्शाता है।
इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं ने पारदर्शिता की चिंता उठाई, यह कहते हुए कि कट-ऑफ अंक सार्वजनिक नहीं किए गए। उम्मीदवारों को दस्तावेज़ सत्यापन के लिए बुलाया गया बिना यह जानने के कि सटीक थ्रेशोल्ड क्या है, जो प्रक्रिया में अस्पष्टता का कारण बन सकता है। यह विश्वास को कम कर सकता है, विशेष रूप से बड़ी संख्या में आवेदकों को देखते हुए।
सांख्यिकीय अवलोकन
निम्न तालिका भर्ती प्रक्रिया के मुख्य सांख्यिकीय डेटा को संक्षेप में प्रस्तुत करती है:
मेट्रिक | विवरण |
---|---|
कुल आवेदक | 17.53 लाख |
उपस्थित उम्मीदवार | 10.52 लाख |
प्रभावित रिक्तियां | 6000 से अधिक |
परीक्षा तिथियां | 1 दिसंबर – 3 दिसंबर 2024 |
शिफ्टों की संख्या | 6 |
अगली कोर्ट सुनवाई | 2 जुलाई 2025 |
यह तालिका भर्ती की जटिलता और कानूनी कार्यवाही की समयरेखा को दर्शाती है।
कानूनी और प्रक्रियात्मक निहितार्थ
कोर्ट का हस्तक्षेप सार्वजनिक क्षेत्र की भर्तियों में परीक्षा प्रक्रियाओं के मानकीकरण को लेकर व्यापक चिंताओं को दर्शाता है, जहां निष्पक्षता सर्वोपरि है। P सूत्र को प्राथमिकता देने के सुप्रीम कोर्ट के संदर्भ से संकेत मिलता है कि Z सूत्र को चुनौती देने के लिए कानूनी आधार हो सकता है, जो भविष्य के मामलों के लिए मिसाल कायम कर सकता है। RSMSSB और विभाग को चार सप्ताह के भीतर जवाब देने की अवधि यह अवसर प्रदान करती है कि वे अपनी पद्धति को सही ठहराएं या विकल्प प्रस्तुत करें, जो 2 जुलाई 2025 को परिणाम को प्रभावित कर सकता है।
दस्तावेज़ सत्यापन जारी रखने के बावजूद नियुक्तियों पर रोक, व्यवहारिक दृष्टिकोण को दर्शाता है, जो संभव जहां तक संभव हो, व्यवधान को कम करता है, जबकि कानूनी चिंताओं को संबोधित करता है। हालांकि, देरी से उम्मीदवारों और विभाग दोनों पर रसद संबंधी चुनौतियां आ सकती हैं, जैसे लंबी प्रतीक्षा अवधि और संसाधन तनाव।
अतिरिक्त विचार
कट-ऑफ अंकों का सार्वजनिक न करना, जैसा कि याचिका में उल्लेख किया गया, महत्वपूर्ण पारदर्शिता मुद्दे उठाता है। प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में, कट-ऑफ की स्पष्ट संचार आवश्यक है ताकि उम्मीदवार अपनी स्थिति का आकलन कर सकें। इस जानकारी की अनुपस्थिति को प्रक्रियात्मक चूक माना जा सकता है, जो स्थिति को और जटिल बनाता है।
निष्कर्ष और भविष्य की दृष्टि
राजस्थान हाई कोर्ट का आदेश सार्वजनिक परीक्षाओं में निष्पक्षता और पारदर्शिता के महत्व को रेखांकित करता है। 2 जुलाई 2025 की सुनवाई तक, हितधारकों को परिणामों पर नजर रखनी चाहिए, जो भर्ती प्रक्रिया को फिर से आकार दे सकते हैं। उम्मीदवारों को आधिकारिक चैनलों और प्रदान किए गए समूह लिंक के माध्यम से अपडेट के लिए सूचित रहने की सलाह दी जाती है। इस विवाद के समाधान से राजस्थान और उससे आगे की भविष्य की भर्तियों में सामान्यीकरण और पारदर्शिता को संभालने के तरीके पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ने की संभावना है।